बेस्ट फ्रेंड - 1 SURENDRA ARORA द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बेस्ट फ्रेंड - 1

बेस्ट फ्रेंड

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

(1)

1. चमक

" अभी निकलेगी क्या ?"

" पूछ क्यों रही है, ये तो रोज का ही रूटीन है। "

" आज रहने दे न यार ! "

" तुझे नहीं जाना क्या ? "

" आज मन नहीं है। "

" लगता है, बैंक - बेलेंस संभल नहीं रहा ? तेरा क्लायंट तो शहर का बहुत असरदार आसामी है। हर रात के बीस हजार और सुना है तुझे प्यार भी करने लगा है। तेरा मूड देख कर ही तुझे छूता है। "

" हाँ ! कह तो ठीक रही है तू पर ! "

" पर - वर क्या ? बहुत लक्की हो मेरी जान ! कभी मुझे कोई ऐसा टकर गया तो मैं तो फिर कभी किसी और को नहीं पकड़ूँगी। महीने की सिर्फ दस ऐसी रातें और दो लाख पक्के।बाकी सब बोनस। जिंदगी मस्त। दुनिया का कोई भी और काम साला दस साल में भी इतना कुछ न दे पाता। "

" बदन टूटता है यार। बाहर से भी और कई बार अंदर से भी। कभी - कभी तो लगता है कि देह की नसों में खून नहीं, पिघला हुआ कांच रेंग रहा है।"

" उसका प्यार हजम नहीं हो रहा क्या ? "

" अरे, इसे प्यार कहती है तू जो हर रात देह के उभारों में रास्ते ढूंढ़ता है। जिस दिन ये उभार पिलपिले या खुरदुरे हो जायेंगें, उसी दिन ये प्यार, डरावने भूत में बदल जायेगा। प्लीज, आज तू भी मत जा न ।"

" कह तो ठीक रही है पर रुक कर क्या करुँगी ? पूरे दस हजार का नुक्सान है। "

" फिर कभी आ जायेंगे। अभी तो तेरा सबकुछ बरक़रार है। रुक जाएगी तो आज हम दोनों एक - दूसरे से प्यार करेंगें, भरपूर प्यार और सिर्फ प्यार। "

दोनों की आँखें आसुओं में चमक रहीं थीं।

**************

2. कर्तव्य बोध

" जब से पदोन्नति हुई है, घर - गृहस्थी सब कुछ भूल गए हैं. ऐसे व्यस्त रहते हैं कि यह भी याद नहीं कि आपका एक घर है और उस घर में रहने वालों की कुछ जरूरतें भी होती हैं.

".आपके लिए तो बस फाइलें हैं जो घर में भी पीछा नहीं छोड़ती. न बच्चों की फ़िकर है और न ही अपनी. कम से कम सुबह की चाय तो सुकून से पी लिया कीजिये." पत्नी ने चाय का कप देते हुए अपनी शिकायत दर्ज करवाई.

" गुस्सा मत करो प्लीज. लो सारी फाइलें एक तरफ रख दीं. तुम्हारी चाय कहाँ है. अपनी चाय लाओ.आज सबसे पहले बेगम के साथ चाय का स्वाद, उसके बाद कुछ और."

सिंह बाबू जो अब सिंह साहब बन चुके थे, अपने पुराने अंदाज में लौटे तो सुधा ने भी देरी नहीं की, " रहने दीजिये अपनी बड़बोली बातें, " आपकी प्रमोशन मेरे तो जी का जंजाल बन गयी है. आपके पास अब घर के लिए टाइम ही नहीं है. मैं पहले सिर्फ घर संभालती थी, अब बाजार - हाट के काम भी मेरे जिम्में हो गए हैं."

" औफ़ हो ! शिकायत ही करती रहोगी या हमारे साथ सुबह की चाय का आनंद भी लोगी. "

" इन चोचलों के लिए मेरे पास टाइम हो तो बैठू. आपकी गृहस्थी के इतने काम निकले रहते हैं कि सुबह से शाम कब हो जाती है, पता ही नहीं चलता."

" कोई बात नहीं. अब तो बैठ भी जाओ."

" बैठ क्या जाऊं ? परसों दीपावली है और आधे घर की झाड़ - फुहार भी नहीं हो पायी, जब कि एक हफ्ते से इसी काम में लगी हूँ. जब तक अफसर नहीं बने थे तो कम से कम यह काम तो करवा ही दिया करते थे. आज इतवार है फिर भी आपको अपनी फाइलों से ही फुर्सत नहीं है. आपके घर पहुंचने से पहले आपकी फाइलें घर आ जाती है जैसे सारे शहर का जिम्मा इन्हीं के जिम्में हो." सुधा अपनी चाय के साथ पति के पास बैठ गयी पर शिकायतों का पिटारा बंद नहीं हुआ. चाय का पहला घूंट गले से उतरा भी नहीं था कि दरवाजे पर हल्की सी थाप ने उनका ध्यान भंग कर दिया, " यह सुबह - सुबह कौन आ मरा. काम वाली बाई को तो ग्यारह बजे बुलाया था." सुधा बुदबुदाई.

" जरा देखो तो कौन है." सिंह साहब ने कहा तो सुधा ने जाकर दरवाजा खोला,

सौम्य और महंगी पौशाक में सजे एक सज्जन खड़े थे. उनके एक हाथ में बड़ा सा गिफ्ट पैक था और दूसर हाथ में गुलाब के ताजा फूलों का बड़ा सा गुलदस्ता.उनके पीछे एक बड़ी सी गाड़ी उनकी सम्पन्नता का बखान कर रही थी. सज्जन ने हाथ जोड़कर बड़ी शिष्टतापूर्वक कहा , " मैडम, सर हैं क्या ? " सुधा के लिए यह अनुभव बेहद चौकाने वाला था. चेहरा आश्चर्य से घिर गया. उसने संकोची भाव से पूछा, " कौन सर ?"

" जी सिंह सर." सज्जन की विनम्रता में कोई कमी नहीं थी. "

" हाँ है, कहिये !' सुधा ने सिर पर दुप्पटे को ठीक करते हुए कहा.

" जी.साहब और आप सबकी खिदमत मेँ दीवाली की मुबारकबाद देने आया था." उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा. अब तक सिंह साहब भी कमरे से बाहर आ चुके, " आइये - आइये मनोज जी. अंदर तो आईये. इन सब की क्या जरूरत थी.आपको भी दीपावली मुबारक."

" जी, आपको और बच्चों को दीपावली मुबारक. सर, इस अवसर पर यह छोटी सी भेंट स्वीकार करें.अंदर फिर कभी. अब तो आना - जाना लगा ही रहेगा." कहकर उन्होंने हाथ जोड़ दिए.

सुधा के लिए यह अनुभव बिलकुल नया था. वह उत्सुकता पूर्वक कभी उस सौगात को तो कभी जाते हुए उन सज्जन को देखती रही. सौगात हाथों में लेकर ठंडी होती चाय की ओर बढ़ी ही थी कि दरवाजे पर आकर एक और कार खड़ी हो गयी. इस बार भी अभी - अभी घटित घटना क्रम को लगभग उसी रूप में दोहराया गया. यह सिलसिला सारा दिन चलता रहा. शाम होते होते सुधा के ड्राइंग रूम का हर कोना तरह - तरह के गिफ्ट आइटमों से भर गया. उसके वैवाहिक जीवन में ऐसी दिवाली कभी नहीं आई थी. " शाम के खाने पर उसने पति से कहा, " मुझे नहीं पता था कि आपकी नई जिम्मेदारी कितनी अहम है. फाईलें निपटा - निपटा कर आप तो बहुत थक जाते होंगे. देखिये आप इस जिम्मेदारी को सम्भालिये और घर – गृहस्थी के सारेकामों की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दीजिये, मैं कर लूंगी."

***********

3. शिकवा

राहुल समय से आफिस पहुंच गया पर बिना किसी से बात किये अपनी टेबल पर जा बैठा. बॉस अभी आया नहीं था. बॉस के आने के बाद ही काम का एजेंडा तय होता है. काम न होते हुए भी उसने अनमने भाव से कम्प्यूटर का स्विच ऑन कर दिया. वह सोच ही रहा था कि किस प्रोग्राम को खोले कि तभी श्वेता अपनी मुस्कान के साथ उसके सामने आ खड़ी हुई, " गुड मार्निंग ! "

उसने कोई उत्तर नहीं दिया. उसके चेहरे पर असमंजस का भाव आ गया कि क्या उत्तर दे. सोचने लगा जिंदगी में कभी - कभी कैसी - कैसी परिस्थियाँ आ जाती हैं कि जो कभी बेहद अपने और किसी भी औपचारकता के बंधन से अलग होते हैं, उनसे ही बात करते हुए भी जबान, जड़ हो जाती है. फिर भी श्वेता की गुड मॉर्निंग को नजर अंदाज करना उसके लिए सम्भव नहीं था. वह सकुचाया और दबी हुई आवाज में बोला, " गुड मॉर्निंग ". उत्तर देने के बाद उसकी नजरें फिर से कम्प्यूटर - स्क्रीन पर जम गयी. श्वेता अब भी वही खड़ी रही.

" सुबह मेरा फोन क्यों नहीं उठाया ? "

"....................!" उसने कोई उत्तर नहीं दिया.

" बताओ न तुमने मेरा फोन क्यों नहीं रिसीव किया. " श्वेता ने फिर से दोहराया.

" उससे क्या हो जाता ? तुम फिर से कोई शिकायत करती, फिर कोई इल्जाम जड़ देती. "

" क्या शिकायत करती या क्या इल्जाम जड़ती ? "

" बेमतलब की शकायतें कि अपने अपना मोबाइल से मेरा फोटो क्यों निकाल रहे थे या मेरी ड्रेस की तारीफ़ क्यों कर रहे थे ? "

" तो ऐसी हरकत करते ही क्यों हो ? "

" हो गयी न शुरू. जाओ सब लोग आते होंगें. अपना काम कर लो.' राहुल के स्वर में उदास तल्खी थी.

" आई. टी. एक्सपर्ट महोदय !.कभी तो बात को समझ भी लिया करो. कोई - कोई शिकायत, सिर्फ शिकायत न होकर किसी अच्छे लगने वाले शख्स से बात करने का जरिया होती है और तब उसे शिकायत नहीं, शिकवा कहते हैं."

" शिकवा............ ? "

" नहीं समझे ! शिकवा वो फर्जी शिकायत होती है जो सिर्फ अपने और उन बुद्धू लोगों से की जाती है जो इस बेजान कम्प्यूटर की गुत्थियां तो सुलझा लेते हैं पर किसी जानदार दिमाग की कोमल भावनाओं को नहीं पढ़ पाते."

" हाँ.... आ...आ... मेरा दिमाग बेजान मशीन से ही बात करना जानता है ? यही न. "

" हाँ जानती हुँ राहुल जी आप बेजान मशीनों के नहीं, जीवंत गुथियों के भी इंजीनियर हैं. अब इस फूले हुए मुहं को मुस्कुराने भी दीजिये. फूले रहने से थक गया होगा. "

" उसने कम्प्यूटर - स्क्रीन से अपनी नजरें हटाई, कुर्सी से उठा और धीरे से बोला, " तुम झूठे बहाने बना - बना कर मुझे परेशान करती रहो और ऊपर से तोहमत ये कि मैं मुहँ फुलाता हूँ."

" ठीक है अपने ही अपनों की बातें नहीं समझ सकते तो मैं अब न तो फोन करूंगी और न ही कोई बात करूंगी " श्वेता रुआंसी हो आयी.

" बात करने से कौन मना करता है पर उसमें हर बार शिकायत होगी तो मुहँ फूलेगा या गाएगा ?वह भी रुआंसा हो गया.

" तुम कुछ भी कहो, अब मैं फोन नहीं करूंगीं, बस !"

" कहा न कि फोन तो करो पर शिकायत वाला नहीं."

" सब कुछ तुम्हारे हिसाब से नहीं चलेगा, ठीक है शिकायत न सही शिकवा तो मंजूर करना पड़ेगा."

" हाँ मंजूर है. अब तो कैंटीन चलोगी, सुबह से कुछ नहीं खाया."

श्वेता मुस्कुरा कर बोली " मुझे पता था कि तुम यही करोगे इसलिए मैं अपने घर से तुम्हारे लिए टिफिन ले कर आई हुँ "

श्वेता ने टिफिन खोला तो उसमें सिर्फ दो सफेद रसगुल्ले थे.

" ये तो हंसों का जोड़ा सा लगता है. " राहुल बोला.

" एक मेरा है, दोनों मत गटक जाना. बड़ा हंसों का जोड़ा लगता है." श्वेता ने कहा तो राहुल ने बिना देरी किये दोनों को अपनी जीभ के हवाले कर दिया. श्वेता कुछ क्षण प्यार भरी नजरों से उसे देखने के बाद बोली, " अब तो शिकवा भी करूंगीं और शिकायत भी, चाहे जितना मर्जी मुहँ फुला लो."

राहुल ने रसगुल्ले खा लेने के बाद अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर, इससे पहले कि श्वेता कुछ समझ पाती उन्हें श्वेता की चुन्नी से पोंछ लिया.

वह इतना ही कह पायी, " धत्त गंदे कहीं के. अब शिकायत न करूँ तो और क्या करूँ.".

*************

4. बेचारा

शाहिद भाई ने अपनी सायकिल को स्कूल के स्टैंड पर लगाया और करीब - करीब हाँफते हुए अख्तर मियां के कमरे में जा पहुंचे,

अख्तर मियां आराम की मुद्रा में कुर्सी पर जमें थे. उनकी गर्दन उनकी हथेलिओं पर टिकी थी जो एक तकिये का काम बखूबी कर रही थी. वे चाह रहे थे कि किसी तरह पैरों को मेज पर टिका लें तो टाँगे भी सीधी हो जायेंगीं. बढ़ती उमर के साथ कमबख्त शरीर से जरा सी भी जहमत बर्दाश्त नहीं होती. कभी - कभी तो मन करता है कि नौकरी जाए भाड़ में. अब किसके लिए और कितना कमाया जाय. नौकरी के अड़तीस साल कोई कम नहीं होते.इतने अरसे में पूरी दो पीढ़ियां जवान हो जाती हैं. बहुत कुछ जोड़ लिया है. और कितना और जोड़ा जाय. पर एक बात और भी है. यहीं कौन से भाड़ झोंकने पड़ते हैं. चार- पांच घंटे का खेल, उस पर इतनी सारी छुट्टियां. काम कुछ नहीं.आओ, बैठो और चले जाओ. गरीब - गुरबों के ये बच्चे. इनके साथ कितनी ही दिमाग - खपाई कर लो, ये बदजात रहेंगें ढाक के तीन पात. वही अनपढ़, वही गंवार. इनको दोपहर का खाना चाहिए और इनके माँ - बाप को चाहिए सरकार से मिलने वाली नगद खैरात. इसलिए जिम्मेवारी भी कोई ख़ास नहीं. घर बैठ कर बुड्ढे होने से अच्छा है, यहीं आकर कुछ घंटे बिता लो. टाइम का टाइम पास और मोटी तनखाह को तोहफा अलग से." मियां ! जल्दी से स्टेटमेंट दो."

" जब भी आते हो घोड़े पर सवार रहते हो." अख्तर मियां ने पैरों को मेज से उतार कर नीचे रखा.

" घोड़े की छोड़ो, ऊपर से सख्त आर्डर हैं. स्टेटमेंट आज ही चाहिए. वैसे ये फरमाओ कि अमां आते ही स्कूल में आधी छुट्टी करवा दी क्या ? बच्चे मौज - मस्ती और सारे मास्टर कमरों के बाहर धूप का मजा ले रहे हैं." शाहिद मियां ने तंज कसा. " क्यो, स्कूल तो बदस्तूर चल रहा है सारे टीचर अपनी - अपनी किलास में है. मैं अभी राउंड लेकर आया हूँ."

" रहने दो यार. कम से कम इस उमर में तो गोली देना बंद कर दो. खैर छोड़ो तुम जानो और जाने तुम्हारा काम. मुझे तो बस वो स्टेटमेंट दे दो जिसे पूरा करने के लिए पिछले हफ्ते देकर गया था. मुझे आज सारे स्कूलों की स्टेटमेंट कम्पाइल करके हर हाल में बड़े दफ्तर को भेजनी है."

" कमाल करते हो यार. तुम्हारी घोड़ी की लगाम हमेशा कसी ही रहती है. मियां इतनी टेंसन मत लिया करो. सरकार के काम अफरातफरी में नहीं होते. जिंदगी में सुकून की बड़ी अहमियत होती है. सुकून ही न रहा तो सॉरी कायनात भला किस काम की."

" बाते मत बनाओ. स्टेटमेंट मेरे हवाले करो. मुझे अभी एक और स्कूल में भी जाना है."

" भाई मियाँ कौन सी स्टेटमेंट ? कुछ खुलासा तो करो."

" इसका मतलब अभी तैयार नहीं हुई. ऐसे कैसे चलेगा भाई ?"

" देखो, तैश में मत आओ. पूरा मुल्क ऐसे ही चल रहा है. बैठो ! चाय - पानी पीओ. मैं खालिद को बुलवा देता हूँ. इन सब कामों को वही देखता है. उसे बता दो तो स्टेटमेंट बन जायेगी."

" बैठने - बिठाने का वक्त नहीं है, अख्तर मियां. तुम्हें भले ही बुरा लगे पर यह जान लो कि मुल्क मेज पर टांग रख कर सोने से नहीं चल रहा. हाथ में औजार लेकर काम करने से चल रहा है. वो चाहे मजदूर की हंसिया हो, किसान का हल हो, बाबू की कलम हो, जवान की बंदूक हो या हो टीचर के हाथ में ब्लेकबोर्ड पर घिसता हुआ चॉक."

"...................................! "

अख्तर मियां के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. वे हें -हें करके घिसियाने लगे तो शाहिद मियां ने कहा, " अभी तो जा रहा हूँ पर जब कल आऊं तो स्टेटमेंट तैयार मिलनी चाहिए."

अख्तर मियां उन्हें जाता हुआ देखते रहे फिर धीरे से बोले " बेचारा शाहिद ! इसे यही नहीं पता कि मुल्क कैसे चल रहा है. "

इस बार उनकी टांगें पूरी मेज पर फ़ैल गयीं.

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5. दलदल

" लगता है आज हमारी जान का मूड कुछ ठीक नहीं है !"

" मूड क्या यार, घर - गृहस्थी में ही जिंदगी खप् रही है, मैं तो बोर हो गयी."

" कोई नई बात हुई है क्या......? "

" नया क्या होना है. सुबह उठो, पति महोदय के लिए नाश्ता बनाओ, पैक करो. उन्हें आफिस भेजने के बाद बच्चों को तैयार करो. स्कूल के लिए चलता करो......सबके विदा होने के बाद बिखरी हुई हर चीज को समेटो. उसके बाद सारे दिन के बंधे - बंधाये काम....शाम होते ही फिर वही सबकुछ और उसके बाद, वही घिसी हुई रात....कुछ भी तो नया नहीं.....ये भी कोई जिंदगी है क्या ? "

" ठीक है कुछ नया करते हैं."

" नया क्या कर लोगे ?"

" कल दोपहर को फिल्म चलते हैं."

" शाम को उनसे क्या कहूँगी ?"

" कुछ भी कह देना या फिर हमेशा की तरह का परमानेंट बहाना कि शॉपिंग करने मार्किट गयीं थी."

"कौन सी फिल्म दिखाओगे ?"

" तुम्हारे साथ तो रोमांटिक ही चलेगी."

" हमेशा गुड़िया कि तरह ट्रीट करते हो और चाहते हो हमेशा वही करूँ जो तुम चाहो."

" मैं भी तो यही करता हूँ."

" एहसान करते हो क्या ? तुम्हारी मजबूरी है कि मेरा कहा मानो "

" क्या मतलब ?"

" मतलब ये मजनूं मियां कि तुम्हारे पास कोई विकल्प ही नहीं है."

" हाँ तुम्हारे पास तो विकल्पों की लाइन लगी है ?"

" तुम पीछे हट जाओ, तुम्हे खुद ही पता चल जाएगा ?"

"....................................................!"

" चुप क्यों हो गए ?.......साहब की बोलती बंद क्यों.हो गयी."

"........................................................!"

" अरे कुछ है तो बोलो न."

".............................................!"

उसकी जबान को लकवे ने निष्क्रिय कर दिया और उसकी चेतना से संवेदना गायब हो गयी. वह रिश्तों की इन अवैद्य सच्चाइयों का सामना करने के लिए तैयार नहीं था. उसकी इच्छा हुई कि वह संबंधों की इस कालिख से स्वयं को मुक्त कर ले. जिस उद्गार को वह अनंत ऊर्जा का स्रोत समझ प्रेम के रूप में अपने अंतरमन में प्रतिष्ठित किये बैठा था, वह उसके सामने स्वयं द्वारा सृजित की हुई विष धारा में घिरकर प्रलय की घोषणा कर रही थी.

वह यंत्र - वत उठा.उसके सिले हुए होंठ बड़बड़ाये, " तुम अपने दम्भ के दलदल में स्वयं ही दफन हो जाओगी, मेरे लिए तुम्हारा और अधिक साथ देना किसी डूबती नाव पर सवार होना है."

उसने मन ही मन कहा, " जिंदगी कभी विकल्पहीन नहीं होती."

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6. पासवर्ड

" सुलेखा अब भी तुम्हें उतना ही, शायद उतने से भी ज्यादा प्यार करती है, जितना पहले करती थी जब कि न जाने क्यों लोकेश में अब वो बात नहीं रही."

सुलेखा के शब्दों में शिकायत थी पर आँखे तो वैसे ही मचल रही थी जैसे बरसों पहले मचला करती थीं. लोकेश ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

"सुलेखा अपनी दिनचर्या के एक भी पल की कल्पना लोकेश के बिना नहीं कर सकती. उसका हर पल लोकेश के लिए उसी तरह जीता और उसी तरह मरता है जैसे तब जीता और मरता था, जब लोकेश उसकी जिंदगी का हिस्सा बनने की प्रक्रिया में था." सुलेखा अपने गालों पर घिर आई लाली को छुपाने की कोशिश करने लगी.

लोकेश की दृष्टि अब भी अपने कम्प्यूटर - स्क्रीन में उलझी थी.

" सुलेखा, लोकेश के लिए वो सब कुछ कर सकती है, जो अब तक किसी ने न किया हो." सुलेखा ने अपने श्वासों पर नियंत्रण खो दिया था.

लोकेश की दृष्टि कम्प्यूटर - स्क्रीन से हट गयी. वह अपनी सुलेखा को उसी शिद्द्त से देखने लगा जैसे वह उसे वर्षों पहले देखा करता था. सुलेखा का सारा परिवेश झंकृत हो गया. अदृश्य कम्पनों ने उसके चारों ओर मधुर संगीत की स्वर - लहरियाँ बिखेर दीं. अब तक कविता करते उसके अधर, जड़ हो गए वह लोकेश की नजरों की गहराई में उतरने को उद्दृत हो गयी.

" मुझसे इतना प्यार करने का जज्बा कहाँ से पाया. " लोकेश ने सुलेखा के कांपते होठों को इंगित करते हुए कहा.

" लोकेश के प्यार से ! " सुलेखा से उत्तर देने में कोई देरी नहीं हुई.

" अपने प्यार के लिए कुछ भी कर लोगी. "

" आजमाना चाहते हो क्या ? "

" अगर फेल हो गयीं तो ? "

“ तुम भूल गए कि एक बार तुम्हें भी आजमाया गया था और तब तुमने सबको यहाँ तक कि अपने पिता को हराकर सुलेखा को पाया था, तो फिर सुलेखा अपनी परीक्षा में फेल कैसे हो सकती है ? " इस बार वो चहक रही थी.

लोकेश ने अपने कम्प्यूटर को फिर से आन किया. फेसबुक - एकाउंट खोलने के बाद सुलेखा से बोला, " लो इसमें पासवर्ड डालो."

" एकाउंट तुम्हारा है तो पासवर्ड भी तुम्ही डालोगे. "

" इसका पासवर्ड है.....' सुलेखा डार्लिंग '.चलो टाइप करो."

सुलेखा स्थिर दृष्टि से सम्मोहित होकर उसे देखती रही.

" देख क्या रही हो, चलो टाइप करो."

सुलेखा ने अपने नाम के साथ डार्लिंग लगाकर लोकेश के फेसबुक - एकाउंट का पासवर्ड टाइप कर दिया, " लो खुल गया तुम्हारा एकाउंट.फिर से खो जाओ अपने दोस्तों के बीच. "

" रूको ! यह फ्रेंड - रिक्वेस्ट देख रही हो, यह मेरे स्कूली दिनों की क्लास - मेट है, उन दिनों यह मेरे लिए स्पेशल थी और हम दोनों इतने दिनों बाद इस तरह एक - दुसरे को ढूंढने में कामयाब हुएं है. शायद यह अब भी मेरे लिए उतनी स्पेशल है, जितनी तब थी. क्या पता मैं अब भी उसे......! "

" बस - बस. और कुछ मत बोलो. सुलेखा ने माउस अपने हाथ में लिया और कन्फर्म - रिक्वेस्ट पर क्लिक कर दिया. क्लिक करते ही अर्चना का सुंदर चेहरा स्क्रीन पर आकर ठहर गया. लोकेश के लिए यह अविश्वसनीय था. वह जड़ बना सुलेखा को देखे जा रहा था.

" बोलो फेल हुँ या पास. तुम्हारे लिए सुलेखा कुछ भी कर सकती है, तुम चाहो तो तुम्हारी ख़ुशी के लिए तुम्हें छोड़ भी सकती है. "

लोकेश ने माउस को पकड़ा उसे घुमाया और अर्चना शब्द को ब्लाक करते हुए बोला, " सुल्लु ! मुझे कभी भी यह पाप मत करने देना, भले ही इसके लिए तुम्हें मुझसे हारना भी पड़े और हाँ अब कभी मेरे किसी भी एकाउंट का पासवर्ड मत भूलना क्योंकि मेरे हर एकाउंट का एक ही पासवर्ड है जो कभी बदलेगा नहीं, जीवन की अंतिम सांस तक."

सुलेखा, लोकेश की दृष्टि को सहेजते हुए बोली, ' देखो उस बार लोकेश सबको हराकर जीते थे और इस बार सुलेखा, लोकेश से हार कर भी जीत गयी.

*********

7. सौंदर्य

"आज उदास – उदास सी लग रही हो ! कुछ गलत हो गया है क्या ? "

" नहीं तो ! "

" यह मत भूलो कि तुम्हारा कुछ भी मुझसे छुप नहीं पाता ! न ख़ुशी और न ही उदासी. "

" मेरे पास तुमसे छुपाने के लिए कुछ है ही नहीं. सब कुछ तो तुम्हारा है तन भी, मन भी और आत्मा भी. "

" तो बताओ आज उदास क्यों हो ? "

" नहीं न ! तुम साथ हो तो मैं कभी उदास हो ही नहीं सकती."

" मैंने कहा न कि तुम्हारा कुछ भी मुझसे छुपा नहीं रह पाता. "

जब सुधीर ने जिद पकड़ ली तो शालिनी संजीदा हो आई. वह बेड से उठकर, सामने रखे बड़े से शीशे के बगल में रखे स्टूल पर टिक गयी. कुछ देर तक स्वयं को दर्पण में देखती रही. फिर पति को अपने पीछे खड़ा करके बोली, ” क्या आप को इस बात का रंज नहीं है कि आपको भी जेठ जी की पत्नी सुधा भाभी जैसी हर तरह से गठीले शरीर वाली सुंदर पत्नी मिलती ? ”

अपने पांच वर्षों के वैवाहिक जीवन में सुधीर ने शालिनी से पहली बार यह प्रश्न सुना था. सुधीर के मस्तिष्क में यह प्रश्न कभी आया भी था तो उसने सिरे से उसे झटक दिया था. वह सोचता था कि जीवन में सब कुछ सब को मिल जाए, यह सम्भव नहीं है. शालिनी रूप – रंग में जैसी भी है, वही उसकी नियति है पर वह इस बात से बेखौफ था कि शालिनी के अंदर कहीं इस बात का रंज है कि वह सुधा भाभी जितने सुंदर शरीर की स्वामिनी नहीं है ! आज शालिनी के इस तरह किये गए प्रश्न ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया. शीशे में मलिन हुआ शालिनी का उदास चेहरा उसकी भावनाओं में चुभन उतपन्न करने लगा. वह संजीदा हो गया. उसे सूझ नहीं रहा था की शालिनी के प्रश्न का क्या उत्तर दे. उसे लगा शालिनी निढाल हो रही है. वह बोला, ‘ क्या हमारी शालिनी इतनी सी बात भी नहीं जानती कि स्त्री हो या हो कोई पुरुष, उसका सौंदर्य उसके शरीर की बनावट से नहीं, उसके दिमाग में विचर रहे विचारों से बनता है. तुम जिस शिद्द्त और अपनेपन से मेरी हर छोटी – बड़ी जरूरत को अपनी जरूरत मानती हो वही मेरे लिए तुम्हारा सौंदर्य है. तुम ऐसी न होती तो में हर पल अपने भाग्य को कोसता. रही बात सुधा भाभी की तो उसका उत्तर भैया जाने.’

शालिनी ने शीशे को धीरे से कहा, ‘ धन्यवाद दर्पण जी ! मैं ही संसार की सबसे सुंदर स्त्री हूँ. अब आप आराम कीजिये और मुझे अपने सुधीर के लिए कुछ अनोखा करने दीजिये. “

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8. पगली

" जीवन में कभी आंधी, आ गयी तो क्या करोगे ? उसके करीब उसने आकर धीरे से पूछा.

" करना क्या है, आंधी के रुकने की प्रतीक्षा करूँगां." उसने उसके हाथों को सहलाते हुए कहा..

" और अगर आंधी ने अंधड़ का रूप ले लिया तो ? उससे तो कभी - कभी बहुत बड़े पेड़ भी गिर जाते हैं ? " उसकी आवाज में कपकपाहट थी.

" तुम यह क्यों भूल जाती हो कि अंधड़ का असर उन्हीं पेड़ों पर होता है जिनकी जड़ें कमजोर होती हैं, साथ ही बादल हर अंधड़ का पीछा करते हैं जो पहले गर्जना करते हैं और फिर शीतल फुहारों के रूप में तब तक बरसते हैं जब तक कि हवा में फ़ैल गयी सारी धूल धरती का हिस्सा नहीं बन जाती और हर पेड़ की पत्तियाँ धुलकर साफ़ नहीं हो जातीं.'

उसने अपना सर उसके वक्ष पर टिका दिया.

" कहाँ से ला पाते हो अपनी सोच में इतना विशवास ? " उसने वक्ष से टिके - टिके ही कहा.

' पगली ! प्रकृति के सामान्य क्रिया - कलापों से ही हमारी मनोभावनाएं संचालित होती हैं.क्या तुम्हारा मुझ पर विशवास, मुझमें इतना साहस भी नहीं उतपन्न कर सकेगा कि मैं जीवन में किसी भी आंधी या अंधड़ का ठंढी फुहारों के आने तकमुकाबला कर सकूं ?"

" मैं तो सचमुच तुम्हारी पगली हूँ और हमेशा यही बने रहना चाहती हूँ." कहकर वह उसके और पास खिसक आई.

उसने उसे अपने अंकपाश में कस कर बाँध लिया तो वह बोली, " अपनी पगली को यहीं पर विश्राम करने दो, यही उसकी सेज है. "

***********